इंजीनियर्स डे पर जानिए कानपुर मेट्रो ने इंजीनियरो के कमाल से देश में बनाये कई बड़े रिकार्ड्स

आज इंजीनियर डे है और आज हम आपको इंजीनियरों के कमाल से कानपुर मेट्रो ने देश में बनाए कई रिकॉर्ड के बारे में बताएंगे। आपको बता दें कि देश में सबसे तेज रफ्तार से पहला चरण पूरा करने वाली मेट्रो की प्रयोजना बनी है इसके साथ ही ऊर्जा बचाने से लेकर ट्रेनों के ट्रैकों के बिछाने में इंजीनियर ने कानपुर में बेहतर प्रदर्शन किया है। इससे देश की अन्य परियोजनाओं के लिए मिसाल बन चुका है यही नहीं आपको बता दें कि कोरोना काल के दौरान ट्रेन बंद थी तो इंजीनियर ने सबसे पहले क्रासिंग के सामने ही पिलर लगाने का काम कराया अरविंद सिंह परियोजना निदेशक का कहना है कि यातायात को रोक कर काम करना बहुत ही मुश्किल होता है लेकिन नई सोच के साथ काम की वजह से पहला चरण तेजी से पूरा हुआ है।

आइए जानते हैं दिल्ली, लखनऊ और कानपुर मेट्रो निर्माण में क्या अंतर है?

दिल्ली मेट्रो की बात करें तो दिल्ली में पहले कॉरिडोर शाहदरा मेट्रो परियोजना का शुभारंभ 24 सितंबर 2002 को हुआ इसे पूरा होने में 4 वर्ष लगे।

वही लखनऊ में 27 सितंबर 2014 को हुआ था 5 सितंबर 2017 शुरु हुआ वाणिज्य संचालन जिसको लगभग 3 वर्ष लगे।

लेकिन कानपुर में आईआईटी से मोती झील के बीच 15 नवंबर 2019 को शुरू हुआ था वही 30 नवंबर 2021 में पहला ट्रायल रन हुआ।

दिल्ली का पहला कॉरिडोर 8.4 किलोमीटर का था , लखनऊ का 8.5 किलोमीटर का था और कानपुर का 8.728 है।

लखनऊ मेट्रो का जब काम शुरू हुआ तो एक दिन भी नहीं रुका था लेकिन कानपुर में 4 महीने कोरोना से काम प्रभावित रहा। लगभग 6 महीने काम बंद रहा।

डबल टी गार्डर्स का प्रयोग सफल

आपको बता दें कि कानपुर मेट्रो देश में पहली रेल परियोजना है जहां पहली बार डबल टी गार्डर्स का इस्तेमाल किया गया। इससे दो अलग-अलग ड्रेस अलग-अलग वक्त पर बनाने की जरूरत नहीं पड़ी एक साथ दोनों ट्रक के आधार पर तैयार होते गए वहीं अच्छी बात यह थी कि बीच के जगह को भरने के लिए कंक्रीट का भी समाप्त नहीं करना पड़ा था।

ट्रेन में ब्रेक लगने से खर्च हुए उर्जा भी वापस ली जाती

यह देश में पहली बार ऐसा हुआ कि मेट्रो में ब्रेकिंग सिस्टम पर खर्च होने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल के लिए थर्ड रेल डीसी सिस्टम के साथ एक खास प्रकार का इनवर्टर लगाया गया वही देखा जाए तो देश में कहीं भी ऊर्जा को फिर से इस्तेमाल करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। सारी की सारी ऊर्जा वेस्ट हो जाती है यहां पर प्रति एक हजार यूनिट ऊर्जा के व्यय पर 400- 450 यूनिट तक ऊर्जा को संरक्षित करने की व्यवस्था है।

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